Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | सितम्बर 4, 2006

हर सांस बन्दी है यहां

  कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?
  कैसे रचे इतिहास जब आकाश बन्दी है यहां?

  अंकुर अभी पनपा ही था कि नष्ट तुमने कर दिया,
  कैसे लेंगे जन्म जब गर्भांश बन्दी है यहां?
  कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?

  सपने भी जब देखे हमने उनपे भी पहरे लगे,
  कैसे पूरे होंगे जब हर ख्वाब बन्दी है यहां?
  कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?

  सदियों से रितु बदली नहीं,अपनी तो इक बरसात है,
  कैसे करें त्योहार जब मधुमास बन्दी है यहां?
  कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?

  त्याग की कीमत न समझी त्याग जो हमने किए,
  छीन लीन्हीं धडकनें पर,लाश बन्दी है यहां।
  कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?

  कुछ कहने को जब खोले लब,खामोश उनको कर दिया,
  कैसे करें अभिव्यक्त जब हर भाव बन्दी है यहां?
  कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?

  खून की वेदी रचा कर तन को भी दफ़ना दिया,
  कैसे जिएं? कैसे मरें? अहसास बन्दी है यहां।
  कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?

   डा. रमा द्विवेदी

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प्रतिक्रियाएँ

  1. “कैसे करें उल्लास जब हर सांस बन्दी है यहां?
    कैसे रचे इतिहास जब आकाश बन्दी है यहां?”
    वाह रमा जी, बहुत बढिया. सुंदर अनुभूति. बधाई.

  2. मन को छूने वाले एहसास है।

  3. अति सुंदर ।

    यथार्थता की अनुभूति ।

  4. raat ke 2 bje sochaa aaj aapka pura blog padungi sabhi rachanao ko padungi. per jab padna shuru kiya to 3:30 kab bje ehsaas hi nhi hua. sabhi per comment dene ka man kiya kcuh per diya or kuch per ye soch ker nhi diya ke comment ke karna koi padne se rah jaye. sabhi rachane bhut achi lagi. kuch ne to comment kerne per vivash saa ker diya. or kuch ko padker me moun si rah gyi.

  5. बहुत बहुत शुक्रिया ज्योत्सना जी ,कि आपने इतने उत्साह से नींद की परवाह किए बिना रचनाएं पढ़ी….और अपने भावों को प्रगट किया….यह दिल को बहुत भा गया….आगे भी यह उत्साह बनाए रखेंगी… इसी आशा के साथ…


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