Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | फ़रवरी 28, 2024

सामाजिक विद्रूपताओं और विसंगतियों पर प्रहार करतीं लघु कथाएँ-“मैं द्रौपदी नहीं हूँ”

आदरणीया डॉ. रमा द्विवेदी जी की साहित्य जगत में एक विशिष्ट पहचान है। उनके तीन कविता संग्रह पूर्व में ही प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी लघु कथाएँ अनेक पत्र पत्रिकाओं में व फेसबुक के समूहों में प्रकाशित होतीं रहतीं हैं, तथा मैं उनका नियमित पाठक हूँ। 

“मैं द्रौपदी नहीं हूँ” लघुकथा संग्रह में कुल 134 पृष्ठ व 111 लघुकथाएँ हैं, जो सामाजिक विद्रूपताओं और विसंगतियों पर प्रहार करतीं हैं। लघुकथाओं की विषय वस्तु समाज में नित्य प्रति घटित होने वाली अपने आसपास की घटनाओं से ली गयी प्रतीत होती है। सभी लघुकथाएँ पठनीय व पाठक को सोचने पर विवश करके झकझोरने वालीं हैं। इन कथाओं के माध्यम से आज के समाज में महिला उत्पीड़न व इसके विरुद्ध आधुनिक नारी की बुलंद आवाज पाठक व समाज तक पहुँचाने में लेखिका पूर्णतः सफल रहीं हैं। इस संग्रह में गम्भीर विषयों के साथ कविता चोर, टैगियासुर, लिव इन संबंध, कोचिंग, श्रृंगार, कोरोना,सतयुग आ गया, प्री वेडिंग शूट, बैचलर पार्टी, पिंड दान, चुनाव प्रचार, मी टू, सरोगेसी इत्यादि समसामयिक व नैतिक विषय भी लेखिका की पैनी नज़रों से नहीं बच सके।

पुस्तक का शीर्षक पढ़कर ही पाठक के दिमाग में आज की शक्ति स्वरूपा व सक्षम नारी का प्रतिरोध का स्वर गूँज जाता है तथा पुस्तक की विषयवस्तु के बारे में पूर्वानुमान हो जाता है। “मैं द्रौपदी नहीं हूँ” एक ऐसी स्त्री की कथा है जो अपने आत्मसम्मान व इज़्ज़त की रक्षा हेतु घर में ही संघर्षरत है। उसका पति परदेश में है तथा देवर की उस पर बुरी नज़र है। लोकलाज के कारण यह बात वह गाँव व घर में किसी से नहीं कहती है। पति के अवकाश पर आने पर सारी बातें बताने के बावजूद उसका पति कह देता कि यह सब चलता है। तब वह आत्मविश्वास के साथ उद्घोष करती है कि “मैं द्रौपदी नहीं हूँ।” “खरीदी हुई औरत” नामक कथा में निर्धन व अशिक्षित समाज में स्त्री की खरीद फरोख्त को रेखांकित किया गया है। इस प्रकार की घटनाएँ कुछ लोगों को अविश्वसनीय लग सकतीं हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह परंपराएँ व विसंगतियाँ आज भी हैं।

“लोभी गुरु लालची चेला”, “ठगुआ कवि”, “प्रशंसा का भूत”, हर धान बाइस पसेरी जैसी कुछ लघुकथाएँ सोशल मीडिया की विसंगतियों को इंगित करतीं हैं तो कुल गोत्र जैसी लघुकथा में आज के समाज में कुंडली मिलान के औचित्य का प्रश्न उठाया है। बुजुर्गों के प्रति बेटे बहुओं की क्रूरता व गैर जिम्मेदारी को रेखांकित करतीं ‘बहू से बचाओ’, ‘अपनी-अपनी विवशता’, व ‘सही निर्णय’ जैसी लघुकथाएँ भी इस संग्रह में हैं।

विद्वान लेखिका ने अपने ‘अंतर्मन के उद्गार’ में कहा है कि “इस लघुकथा संग्रह में नारी मन की पीड़ा, सामाजिक विसंगतियाँ, अंधविश्वास व रूढ़िवादी पंम्पराओं में पिसती स्त्री, जीवन की विभीषिकाओं व विडंबनाओं के साथ-साथ अत्याधुनिक युगबोध से उपजीं विसंगतियों, प्रश्नों एवं संभावित विमर्श को इसमें समाहित किया गया है।” यद्यपि यह लेखिका का प्रथम लघुकथा संग्रह है,किंतु अधिकांश लघुकथाएँ किसी न किसी विसंगति को उजागर करतीं हैं। 

यह पुस्तक पठनीय के साथ-साथ संग्रहणीय भी है। मुझे विश्वास है कि पाठकों द्वारा इस पुस्तक को पसंद किया जाएगा। विदुषी लेखिका आदरणीया डॉ.रमा द्विवेदी जी को हार्दिक बधाई व उनके उज्जवल भविष्य की कामना के साथ –

         -हरिओम श्रीवास्तव –

से.नि.वाणिज्यिक कर अधिकारी

            भोपाल, म.प्र.

वर्तमान पता- सिएटल,(वाशिंगटन)

 मोबाइल – +919425072932

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