Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | मई 4, 2023

प्रेम: कुछ दोहे

1-

जीवन हो  गर छंदमय ,सब कुछ हो  संगीत। 

साँस -साँस संदल  लगे,जीवन लगता  गीत।। 

2-

कण -कण  में है  गूँजता ,प्रेम भरा  संगीत।

जीवन भी इक गीत है ,अगर गा सकें मीत।।

3-

प्रेम  नाम विश्वास का ,प्रेम ईश का  नाम ।

प्रेम  मिले सद्कर्म से ,जीवन हो सुखधाम।। 

4-

बाधा -विघ्न अनेक हैं, प्यार कहाँ  आसान। 

प्यार सफल  हो  जाय यदि ,समझें प्रभु  वरदान।।

5-

जीवन में  सुखमय वही , जिसके दिल में प्यार।

साँस-साँस थिरकन करे , विस्मृत हो संसार।।

6-

प्रेम सदा दिल से करें , इसमें ही  आनंद । 

खेल न खेलें प्रेम में , जिसमें बहु  छलछंद ।।

  *डॉ. रमा द्विवेदी *
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Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | दिसम्बर 27, 2022

मुझे भी निपटा कर जाना -लघुकथा

कर्नल साहब ने पत्नी के निधन की सूचना अमेरिका में रह रहे अपने दोनों पुत्रों -मुन्ना और कान्हा को तुरंत  दे दी और रात भर अपनी पत्नी के शव  के पास अकेले ही बैठे रहे |

दूसरे दिन कान्हा आ गया और उसने पिता जी से कहा -“हम माँ का अंतिम संस्कार कर देते है | ”

कर्नल साहब ने कहा -“अभी नहीं | मुन्ना आता ही होगा , उसका इंतज़ार कर लेते हैं | ”

कान्हा के बार -बार कहने पर भी जब पिताजी  नहीं माने तो  कान्हा के मुख से अचानक  ही निकल गया  “ भैया ने कहा है कि इस बार मैं चला जाऊँ और अगली बार  वे आएंगे |”

कर्नल साहब ने जब यह सुना  वे कमरे के अंदर गए और कागज़  में लिखा “ मुझे भी निपटा कर ही जाना |”  कागज़ अपनी जेब में रख कर उन्होंने  खुद को गोली मार कर अपनी  जीवन  लीला समाप्त कर ली  |

गोली की आवाज सुनते ही कान्हा  दौड़ कर अंदर गया और ज़मीन पर गिरे खून से लथपथ पिता को विस्फारित नेत्रों से देखता रह गया |

-डॉ.रमा द्विवेदी

27 / 12 / 2022

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Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | दिसम्बर 27, 2022

मैं दान की वस्तु नहीं-लघुकथा  

एक आई ए एस लड़की ने अपने पिता से कहा कि “वह विवाह में कन्या दान की रस्म नहीं  करवाएगी क्योंकि वह कोई  वस्तु नहीं है बल्कि उनकी बेटी है|”  क्या तुमने यह खबर पढ़ी ? शान्या ने अपनी मित्र कात्या से पूछा  | 

कात्या ने कहा -हाँ ,पढ़ी है और यह तर्कसंगत भी है कि- “कोई किसी व्यक्ति का दान कैसे कर  सकता है ? सच में कन्यादान की रूढ़िवादी  परंपरा बहुत ही गलत है | इसका विरोध होना ही चाहिए |” 

शान्या ने कहा – “ सच में इस घटना  से लड़कियों को अपने मात -पिता और अपना आत्मसम्मान बचाने  का एक द्वार अवश्य खुल गया है | ”

-डॉ. रमा द्विवेदी 

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Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | दिसम्बर 27, 2022

अंतिम यात्रा की बुकिंग -लघुकथा 

बुजुर्ग दम्पति : “अंतिम यात्रा की बुकिंग का पैकेज क्या है ?” अंतिम यात्रा, कंपनी के रिप्रेजेंटेटिव से पूछा | 

रिप्रेजेंटेटिव ने बताया -“पचास हजार का मध्यम  पैकेज है |” 

बुजुर्ग दम्पति ने पूछा -“इस पैकेज में क्या -क्या शामिल है ?” 

रिप्रेजेंटेटिव ने बताया-  “कफ़न ,फूल -माला ,बाँसों से बनी खटोली  ,उठाने वाले चार लोग ,साथ चलने वाले दस  लोग  जो `राम नाम सत्य है ‘ बोलते हुए चलेंगे , पंडित , अंतिम कर्मकांड का पूरा सामान , अर्थी की तैयारी ,अग्निदाह  इत्यादि  सब कुछ शामिल है और हाँ मृतक के धर्मानुसार ही हम उसका अंतिम क्रिया कर्म करते हैं | क्या मैं आपकी बुकिंग कन्फर्म  कर दूँ ?” 

बुजुर्ग दम्पति :   पति -पत्नी ने एक दूसरे की ओर देखा और डबडबाई आँखों के इशारे से ही मूक सहमति लेकर बुकिंग के लिए `हाँ ‘ कर दी | पर अंत में बुजुर्ग पुरुष ने एक प्रश्न किया  -“ जब हम दोनों  में से कोई एक रह जायेगा उस स्थिति में  आपकी कंपनी कोई  लड़का / लड़की जो  हमारे  घर का सदस्य बनकर अंतिम समय तक  साथ रहे  की बुकिंग भी कर सकती  है क्या ?” 

रिप्रेजेंटेटिव की आँख से आँसू टपक पड़े यह सोचकर कि  “मैं भी अपने माँ -बाप की इकलौती संतान हूँ |” 

-डॉ रमा द्विवेदी 

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