अपनों ने उसे लूटा है,
परायों ने उसे लूटा है।
किसको कहे वो अपना,
जब सबने ही उसे लूटा है॥खुद ही तुम्हें अपनी,
तस्वीर बनानी होगी।
खुद ही तुम्हें अपनी,
तकदीर बनानी होगी॥न रहना इस भ्रम में,
कोई साथ देगा तुम्हें।
साथ तो देगा नहीं,
हरदम मात देगा तुम्हें॥तुमने सदा ही फूल ,
बिछाए हैं उसकी राह में।
उसने सदा ही शूल,
बिछाए हैं तेरी राह में॥फूल सोचता है कि,
शूल रक्षा करेगा उसकी।
“माली” तोड ले जाता उसे,
शूल कर न पाता रक्षा उसकी॥फूल मसल दिए जाते हैं ,
पर शूल से सब डरते हैं।
प्रतिरक्षक शक्ति है जिसमे,
स्वयं वे अपनी रक्षा करते हैं॥कोमल सौन्दर्य सदा कुचला जाता,
यह फूल हमें बतलाते हैं।
चुभ जाओ शूलों की तरह,
अगर कोई तुम्हें सताते हैं॥आत्मरक्षा सबसे जरूरी है,
यह शूलों से सीखना होगा।
न सहो किसी के जुल्मों को,
हमको बचाव करना होगा॥निर्बल जीवन क्या जीवन है,
इससे तो मरना अच्छा है।
अपमानित होकर क्यों जीना?
कुछ करके मरना अच्छा है॥डा. रमा द्विवेदी
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Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | सितम्बर 24, 2006
खुद ही तकदीर बनानी होगी
संवेदना की अनुभूतिय में प्रकाशित किया गया
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फूल ही नहीं शूल भी शिक्षा देते हैं, आपने यह बतलाया हैं.
चुभ जाओ शूलो की तरह
अगर कोई तुम्हे सताता हैं.
वाह!
By: संजय बेंगाणी on सितम्बर 25, 2006
at 4:04 पूर्वाह्न
अंतिम पंकितयां सुन्दर है।
By: ratna on सितम्बर 25, 2006
at 7:55 पूर्वाह्न