Posted by: डॉ. रमा द्विवेदी | फ़रवरी 3, 2012

दादी -अम्मा – ताँका

१- दादी का चश्मा
नाक चढ़ खिसके
दादी टिकाए
पर ढीठ चशमा
फिर खिसक जाए |

२- ले सुई धागा
आँख में चश्मा चढ़ा
कथरी सिले
टांका पे टांका सिले
धागा न डाल सके |

३- अम्मा भोर में
झाडू -बुहारी करे
उपले पाथे
तब नहाए -धोए
दाल -रोटी बनाए |

४- नागपंचमी
माँ जलेबी बनाए
भाई-बहन
सब साथ में खाएं
बहुत सुख पाएं |

५- होली -दिवाली
दशहरा -संक्रांति
गुझिया-खीर-
हिरसे औ’ मुगौड़े
माँ बनाए -खिलाए |

डा. रमा द्विवेदी
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प्रतिक्रियाएँ

  1. सभी ताँका बहुत अच्छे हैं ………दादी को समर्पित ।
    ये हिरसे और मुगौड़े क्या होते हैं ? हमें पंजाब वालों को भी बता दीजिएगा ।
    खैर …जलेबी बहुत अच्छी बनी है ..माँ ने जो बनाई है …मीठी जलेबी और भी मीठी हो गई ।
    हरदीप

  2. हरदीप जी,
    लंबे अरसे के बाद आपका स्नेह प्राप्त हुआ …मन हर्षित है | `मुगौड़े’ मूंग दाल छिलके वाली को बहुत देर भिगोकर बनाया जाता है ..उसे पीसने से पहले धोया जाता है ताकि उसका छिलका निकल जाए |फिर उसमे हरी मिर्च,धनिया पत्ता ,प्याज ,अदरक और नमक आदि मिलाकर पकौड़े जैसे डीप फ्राई करते हैं…. इसे उत्तर भारत में संक्रांति के एक दिन पहले बनाया जाता है और हरी चटनी से खाया जाता है | `हिरसे एक तरह का अनाज होता है जो सफ़ेद राई जैसा दिखता है जब उसका छिलका निकल जाता है ..यह ज्वार और या रागी फेमिली का होता है… उससे यह बनता है इसमें गुड डाला जाता है इसलिए यह मीठा होता है खाने में..इसे भी बड़े जैसा बना कर डीप फ्राई किया जाता है और संक्रांति पर्व पर बनता है पर इसकी विधि थोडा मुश्किल है और मुझे ठीक से मालूम नहीं है पर माँ बनाती थी और मैंने बचपन में खाए है …अब न माँ है कि उनसे पूंछू ….कभी पता चला तो बताऊंगी ….आपकी जिज्ञासा देख कर अच्छा लगा ….. सस्नेह..

  3. बिल्कुल देसी प्रतीक हैं। वही लिख सकता है, जो ध्यान से देखे हो सब!

  4. बहुत सुन्दर…
    विचारों को तांका के बंधन के बावजूद अच्छी तरह व्यक्त किया..
    बधाई.

  5. प्यारी दादी माँ मुस्काई …

  6. ज्ञानदत्त जी, विद्या जी एवं रसप्रभाजी ,
    रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार ….


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